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MP News: कैसे एक वफादार कुत्ता बना सिंधिया परिवार का प्रिय, मालिक के साथ छोड़े प्राण, देखिए हुस्सू की कहानी

MP HUSSU STORY: आपने बड़े-बड़े महान लोगों के स्मारक के बारे में सुना होगा जहां लोग उनकी याद में उनका एक स्तंभ बना देते हैं ताकि वह मरणोपरांत तक चिन्हित रहे।

लेकिन आज हम एक ऐसे कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे आप सुनकर दंग रह जाएंगे हम एक वफादार कुत्ते के स्मारक के बारे में बताने जा रहे हैं जो काफी चर्चित है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया परिवार का एक ऐसा वफादार कुत्ता जिसका आज भी स्मारक मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि वफादार कुत्ते के स्मारक के पीछे काफी रोचक किस्से हैं।  हुस्सू नाम का कुत्ता सिंधिया राजपरिवार के तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम के सबसे वफादार कुत्ता था तथा उसे वह बेहद प्यार करते थे ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन कुत्ते के मालिक अपने प्राण विदेश में त्यागे थे तो ठीक उसी दिन उनका वफादार कुत्ता भी अपना प्राण त्याग दिया था। वही कुत्ते की मौत के बाद समाधि भी बनवा दी गई।

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जॉर्डन ने गिफ्ट में दिया था कुत्ता: सिंधिया राजघराने के तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम का सबसे वफादार कुत्ता हुआ करता था. जॉर्डन शाह ने माधवराव प्रथम को उपहार स्वरूप दिए थे। जिसका नाम हुस्सू रखा था। ऐसा कहा जाता है कि यह कुत्ता सदैव अपने मालिक के प्रति ईमानदार रहा और इसका आना जाना महाराज के बेडरूम तथा वही महाराज भी इस कुत्ते को बहुत ही लाड प्यार करते थे। तथा इसका बहुत ही अच्छे से ध्यान भी रखते थे।

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मालिक और कुत्ते की एक साथ बिगड़ी हालत: मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो समाधि पर लगे बीजक में कहा जाता है कि महाराज पेरिस यात्रा पर जाने से पहले अपने सबसे प्रिय वफादार कुत्ते को महल में ही छोड़ कर गए थे। हुस्सू कई वर्षों तक उनके आने का इंतजार करता रहा तथा रोजाना वह उनके बेडरूम में उन्हें देखने के लिए अक्सर जाया करता था। ऐसा कहा जाता है कि उस दौरान पेरिस में ही तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम की हालत खराब हुई उसी दौरान यहां पर उनके वफादार कुत्ते की भी तबीयत खराब होने लगी. आश्चर्य की बात है या फिर  सहयोग है कि जब पेरिस में तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम ने अपने देह त्यागे  तो ठीक उसी दौरान यहां ग्वालियर में उनका वफादार कुत्ता हिस्सू ने भी प्राण त्याग दिया।

मालिक के साथ कुत्ते ने प्राण त्यागे: पेरिस में तत्कालीन महाराजा माधवराव प्रथम ने मृत्यु से पहले उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि उनके शव को उनके सबसे प्रिय कुत्ते के पास ले जाया जाए, पर उन्हें नहीं पता था कि उनकी मौत के दौरान ही उसने भी अपने प्राण त्याग दिए थे। महाराजा की उनकी आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उनके पुत्र जीवाजी राव सिंधिया उनकी अस्थियों को लेकर ग्वालियर पहुंचे। तथा उनकी अस्तियो को उनके सबसे वफादार कुत्ते के स्मारक के पास कुछ समय के लिए रख दिए। महाराजा के सबसे वफादार कुत्ते का स्मारक समाधि पर पूरे वृतांत का उल्लेख किया गया है। यहां तक कि तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम और उनके सबसे प्रिय वफादार कुत्ते का स्मारक एक ही जगह बनाई गई है। मालिक और वफादार कुत्ते की स्मारक आमने सामने ही है

मालिक और वफादार कुत्ते की दोस्ती एक मिसाल है: तत्कालीन महाराजा माधवराव प्रथम और उनके सबसे प्रिय कुत्ते की दोस्ती एक मिसाल के रूप में कहीं जाती है। उनका एक वफादार कुत्ता उनके बिना नहीं रह सकता था शायद यही कारण है कि जब वह पेरिस की यात्रा पर निकले थे तो उसी दिन से उनका यह वफादार कुत्ता बेचैन हो गया था ऐसा कहा जाता है। खाना पीना सब कुछ छोड़ दिया था। साथ ही तत्कालीन राजा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने सामने से इस वफादार कुत्ते को नहीं जाने देते थे। जब दरबार में पहुंचते थे तो उस कुत्ते को साथ लेकर ही चलते थे उसके साथ ही सुबह शाम कुत्ते को अपने हाथ से खाना खिलाते थे,ऐसी दोस्ती थी 

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