हमारे देश में महिलाओं को देवी स्वरूप माना जाता है। जिसका उदाहरण हर क्षेत्र में देखने को मिलता है चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर घर में परिवार को संभालना हो। हमारे द्वारा आपको ऐसी ही एक महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 23 वर्षों में अबतक 20 हजार पोस्टमार्टम कर चुकी हैं। इनकी कहानी आपको अंदर से झकझोर कर रख देगी। तो आइए आपको बताते हैं विस्तार से यहां….
समाज में बनी मिसाल
दरअसल, हम आपको आज मंजू देवी के बारे बता रहे हैं जो बिहार के समस्तीपुर जिले की रहने वाली हैं। मंजू पिछले 23 सालों से पोस्टमार्टम हाउस में कार्य कर रही हैं, जहां शव को देखकर लोगों के पसीने छूट जाते हैं तो वहीं इनका जीवन लाशों के बीच ही गुजरा है। इस महिला ने न केवल अपने क्षेत्र में महारत प्राप्त की है, बल्कि वो महिला सशक्तीकरण का एक उदाहरण हैं जो कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई हैं।
पूरी खबर नीचे है…
लोगों की बातों को किया अनदेखा
बता दें कि मंजू की शादी बहुत ही कम उम्र में हो गई थी और महज 26 साल की उम्र में वो 5 बच्चों की माँ बन गई। इसी बीच उनके पति की अचानक से मौत हो गई, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। जिसके बाद अपने बच्चों का जीवनयापन करने के लिए उन्होंने डर और समाज की बातों को अनदेखा करते हुए पोस्टमार्टम सहायक की नौकरी शुरू कर दी। शुरुआत में वो ना कुछ खा पाती थी ना ही रात में सो पाती थीं लेकिन धीरे-धीरे वो इस माहौल में ढल गई। इस काम के लिए उन्हें एक डेड बॉडी पर 300 से 400 रुपये मजदूरी मिलती थी।
महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा स्रोत
एक इंटरव्यू के दौरान मंजू ने बताया था कि 20 हजार में से वो आजतक 3 पोस्टमार्टम को नहीं भूल पाई हैं। उन्होंने बताया कि उनकी 5 पीढ़ी इस काम से जुड़ी हुई है। बता दें कि मंजू ने पोस्टमार्टम हाउस में काम करते हुए अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को बहुतंत्र में बदला है। इस सुपरवुमन की कहानी ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी है।
बच्चों ने कही ये बात
बता दें कि मंजू का जीवन काफी चुनौतियों से भरा हुआ है। पति की मौत के बाद अपने बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए उन्होंने उनके भरण-पोषण में कभी कोई कमी नहीं की। बता दें कि मंजू का एक बेटा म्यूजिक में पोस्ट ग्रेजुएट करके अपना म्यूजिक सेंटर चला रहा है तो वहीं उनकी बेटियां पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं। साथ ही, सिविल सेवा परीक्षा की भी तैयारी कर रही है। अपनी मां को लेकर उनके बच्चों का कहना है कि उनकी माता भगवान का स्वरूप हैं। उन्होंने अपने जीवन में इतने कष्ट सहते हुए भी उन्हें कभी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने दी। इसके लिए उन्हें अपनी मां पर गर्व है।